छठ पूजा का पहला अरग, जिसे डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के रूप में भी जाना जाता है, 19 नवंबर, 2023 को है। यह छठ पूजा का दूसरा दिन है, जिसे "खरना" के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन, छठ व्रती महिलाएं सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के लिए नदी या तालाब के किनारे जाते हैं। वे सूर्य भगवान की पूजा करते हैं और उनसे अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ पूजा का अरग देने का शुभ समय
छठ पूजा में दो बार अर्घ्य दिया जाता है : छठ पूजा 2023 कैलेंडर
- डूबते सूर्य को अर्घ्य (संध्य अर्घ्य)
- उगते सूर्य को अर्घ्य (उषा अर्घ्य)
डूबते सूर्य को अर्घ्य (संध्य अर्घ्य)
छठ पूजा का दूसरा दिन, जिसे "खरना" के नाम से भी जाना जाता है, अस्तगामी सूर्य अर्घ्य देने का दिन होता है। इस दिन, छठ व्रती महिलाएं सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के लिए नदी या तालाब के किनारे जाती हैं। वे सूर्य भगवान की पूजा करते हैं और उनसे अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ पूजा का अस्तगामी सूर्य अर्घ्य देने का शुभ समय शाम 5:26 से 6:26 तक है।
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उगते सूर्य को अर्घ्य (उषा अर्घ्य)
छठ पूजा का चौथा दिन, जिसे "पारण" के नाम से भी जाना जाता है, उगते सूर्य को अर्घ्य देने का दिन होता है। इस दिन, छठ व्रती महिलाएं सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के लिए नदी या तालाब के किनारे जाती हैं। वे सूर्य भगवान की पूजा करते हैं और उनसे अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ पूजा का उगते सूर्य को अर्घ्य देने का शुभ समय सुबह 6:47 से 7:47 तक है।
इन शुभ समयों में अर्घ्य देने से सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं और व्रती महिलाओं के परिवार को सुख-समृद्धि और आरोग्य प्रदान करते हैं।
छठ महापर्व की तिथि
महापर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस साल, छठ महापर्व 17 नवंबर, 2023 से 20 नवंबर, 2023 तक मनाया जाएगा।
छठ महापर्व की तिथियां इस प्रकार हैं:
- नहाय-खाय (शुरुआत): 17 नवंबर, 2023
- खरना (डूबते सूर्य को अर्घ्य): 19 नवंबर, 2023
- उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य): 20 नवंबर, 2023
छठ महापर्व सूर्य देव और छठी मइया की पूजा का महापर्व है। यह पर्व उत्तर भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल में विशेष रूप से मनाया जाता है। छठ व्रती महिलाएं इस पर्व के दौरान 36 घंटे का व्रत रखती हैं और सूर्य देव और छठी मइया की पूजा करती हैं।
शाम के समय सूर्य को अर्घ्य देने के कई कारण हैं।
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य भगवान अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ शाम के समय रहते हैं। इसलिए, शाम के समय अर्घ्य देने से प्रत्यूषा भी प्रसन्न होती हैं।
- सूर्य भगवान को जीवन और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। शाम के समय अर्घ्य देने से सूर्य भगवान से आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्य प्राप्त होता है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, शाम के समय सूर्य की किरणें अधिक शांत और पवित्र होती हैं। इसलिए, शाम के समय अर्घ्य देने से सूर्य भगवान से अधिक प्रभावी रूप से आशीर्वाद प्राप्त होता है।
छठ पूजा में शाम के समय अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। इस अर्घ्य को देने से सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं और व्रती महिलाओं के परिवार को सुख-समृद्धि और आरोग्य प्रदान करते हैं।
छठ पूजा 2023 अस्तगामी सूर्य अर्घ्य विधि (Chhath Puja Sandhya Arghya Vidhi)
छठ पूजा का दूसरा दिन, जिसे "खरना" के नाम से भी जाना जाता है, अस्तगामी सूर्य अर्घ्य देने का दिन होता है। इस दिन, छठ व्रती महिलाएं सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के लिए नदी या तालाब के किनारे जाती हैं। वे सूर्य भगवान की पूजा करते हैं और उनसे अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं।
अस्तगामी सूर्य अर्घ्य देने की विधि
- शाम को सूर्यास्त से पहले नदी या तालाब के किनारे जाएं।
- एक सफेद कपड़े में ठेकुआ, चावल के लड्डू, फल, और रोली-चावल रखें।
- सूर्य भगवान की पूजा करें।
- सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के लिए, अपने दोनों हाथों में अर्घ्य का सूप लें और सूर्य भगवान को अर्घ्य दें।
- सूर्य भगवान से अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करें।
सूर्य को अर्घ्य देने के मंत्र
- ॐ सूर्याय नमः
- ॐ भास्कराय नमः
- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
- ॐ आदित्याय नमः
- ॐ नमस्ते रुद्ररूपाय
- ॐ नमस्ते सूर्यभास्कराय
- ॐ नमस्ते सर्वलोकनाथाय
- छठ पूजा के अस्तगामी सूर्य अर्घ्य का महत्व
छठ पूजा का अस्तगामी सूर्य अर्घ्य बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस अर्घ्य को देने से सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं और व्रती महिलाओं के परिवार को सुख-समृद्धि और आरोग्य प्रदान करते हैं।
पूजा एक चार दिवसीय त्योहार है जो हिंदुओं द्वारा सूर्य देव, सूर्य और उनकी पत्नी, छठी मैया की पूजा में मनाया जाता है। यह त्योहार बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़ी भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
त्योहारी के तीसरे दिन, भक्त डूबते सूर्य को अर्घ्य (उपहार) अर्पित करते हैं। इस अनुष्ठान को संध्या अर्घ्य कहा जाता है। भक्त नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। वे भजन गाते हैं और सूर्य देव से आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं।
शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है इसके कई कारण हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव शाम को अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए, डूबते सूर्य को अर्घ्य देना प्रत्यूषा को भी प्रसन्न करता है।
सूर्य देव को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य देव का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्य प्राप्त होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, सूर्य की किरणें शाम को अधिक शांत और निर्मल होती हैं। इसलिए, शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य देव से अधिक प्रभावी रूप से आशीर्वाद प्राप्त होता है।
संध्या अर्घ्य अनुष्ठान छठ पूजा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। ऐसा माना जाता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देना सूर्य देव को प्रसन्न करता है और भक्तों और उनके परिवारों को आशीर्वाद देता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का महत्व कई कारणों से है। यह त्योहार सूर्य देव की पूजा के माध्यम से जीवन और ऊर्जा का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक अवसर है। यह त्योहार परिवार और समुदाय के बीच एकता और भाईचारे को बढ़ावा देता है। यह त्योहार प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान का भी प्रतीक है।
छठ पूजा एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहार है जो हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार लोगों को जीवन के मूल्यों और आध्यात्मिकता के महत्व को याद दिलाता है।



